ULFA1 (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट) ने एक सनसनीखेज दावा किया है। संगठन ने रविवार, 13 जुलाई 2025 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाया है कि भारतीय सेना ने म्यांमार सीमा से सटे उनके शिविरों पर ड्रोन हमले किए हैं। हालांकि, भारतीय सेना के सूत्रों ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया है और किसी भी ऐसे ऑपरेशन से साफ इनकार किया है।
ULFA(I) के बयान के अनुसार, ये ड्रोन हमले रविवार तड़के हुए और कई मोबाइल शिविरों को निशाना बनाया गया। संगठन ने इन हमलों के पीछे भारतीय सेना का हाथ बताया है, जिससे क्षेत्र में एक बार फिर तनाव का माहौल बन गया है।
ULFA1 के आरोप: क्या हुआ था?
ULFA(I) ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में विस्तार से बताया है कि तड़के सुबह उनके कई मोबाइल कैंपों को ड्रोन हमलों का निशाना बनाया गया। संगठन ने इन हमलों को गंभीर बताया है और इसे अपनी संप्रभुता पर हमला करार दिया है। ULFA(I) पूर्वोत्तर भारत में एक सक्रिय उग्रवादी समूह है और म्यांमार सीमा पर उसके ठिकाने होने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। ऐसे में ड्रोन हमलों का यह दावा सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बन सकता है, यदि इसकी पुष्टि होती है।
भारतीय सेना का स्पष्ट खंडन:
ULFA(I) के इन गंभीर आरोपों पर भारतीय सेना ने तत्काल प्रतिक्रिया दी है। सेना के उच्च पदस्थ सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि म्यांमार सीमा पर ULFA(I) के शिविरों पर किसी भी तरह का कोई ड्रोन हमला या अन्य सैन्य अभियान नहीं चलाया गया है। सेना ने ULFA(I) के दावों को बेबुनियाद बताया है। भारतीय सेना अक्सर सीमावर्ती क्षेत्रों में सतर्क रहती है, लेकिन किसी भी ऑपरेशन को आधिकारिक तौर पर स्वीकार करती है। ऐसे में सेना का यह खंडन ULFA(I) के दावों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।
ULFA(1) क्या है?
यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (United Liberation Front of Asom – ULFA) भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में सक्रिय एक सशस्त्र अलगाववादी उग्रवादी संगठन है। 7 अप्रैल 1979 को रंग घर, शिवसागर में स्थापित, इसका मुख्य उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से असमिया लोगों के लिए एक संप्रभु और स्वतंत्र असम राष्ट्र-राज्य स्थापित करना है।
ULFA(I), जिसका पूरा नाम यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम – इंडिपेंडेंट (United Liberation Front of Asom – Independent) है, ULFA का एक धड़ा है। यह धड़ा शांति वार्ता से इनकार करता रहा है और “संप्रभु असम” की अपनी मांग पर अड़ा हुआ है। परेश बरुआ इस गुट के कमांडर-इन-चीफ हैं।
भारत सरकार ने 1990 में ULFA को एक “आतंकवादी संगठन” घोषित कर प्रतिबंधित कर दिया था। इस संगठन ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा, अपहरण, जबरन वसूली और हत्या जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया है। अपने शुरुआती दिनों में, ULFA को असम के कुछ हिस्सों में स्थानीय समर्थन मिला था, क्योंकि लोगों का मानना था कि केंद्र सरकार द्वारा उनके क्षेत्र की अनदेखी की जा रही है।
ULFA ने म्यांमार और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में अपने ठिकाने स्थापित किए थे, जहां से वे अपनी गतिविधियों को अंजाम देते थे। हालांकि, भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा चलाए गए अभियानों के कारण, ULFA को काफी हद तक कमजोर किया गया है। ULFA का एक धड़ा (अरबिंदा राजखोवा के नेतृत्व वाला) भारत सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल हो गया है और दिसंबर 2023 में एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं। लेकिन ULFA(I) अभी भी शांति वार्ता के खिलाफ है और अपनी संप्रभुता की मांग पर कायम है।
पूर्वोत्तर में उग्रवाद और सीमा सुरक्षा:
पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद एक पुरानी समस्या रही है, और ULFA(I) जैसे समूह अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। म्यांमार के साथ भारत की लंबी और जटिल सीमा है, जिसका उपयोग अक्सर उग्रवादी समूह घुसपैठ और आश्रय के लिए करते हैं। सीमा पार ड्रोन हमलों का दावा, भले ही सेना द्वारा खारिज कर दिया गया हो, सीमा सुरक्षा की चुनौतियों को रेखांकित करता है। भारतीय सुरक्षा बल लगातार इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रयास करते रहे हैं।
आगे क्या?
ULFA(I) के दावों और भारतीय सेना के खंडन के बाद, अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि आगे क्या होता है। क्या ULFA(I) इन ड्रोन हमलों के संबंध में और सबूत पेश करेगा? या फिर यह सिर्फ ध्यान आकर्षित करने और माहौल गर्म करने का एक प्रयास है? यह घटना पूर्वोत्तर की सुरक्षा स्थिति पर नई बहस छेड़ सकती है और भारत-म्यांमार सीमा पर निगरानी को और मजबूत करने की आवश्यकता को उजागर कर सकती है।
इस मामले पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि ULFA(I) के दावे में सच्चाई है, या यह सिर्फ एक अफवाह है? नीचे टिप्पणी करके बताएं।